उफ़! यह कलयुग की बाबागिरी
एक समय था जब इस कलयुग के भव सागर से लोगों को निकालने का ठेका बाबा एंड बाबा कंपनी को मिला हुआ था| लोग इन बाबाओं के आश्रम कम समाधान केंद्रों में अपनी दुरूह समस्याओं का समाधान लेने के लिए जाते थे| अब यह दीगर बात है कि वहां पर समस्या का समाधान होता था कि उसकी पैकिंग बदल दी जाती थी| हमारे देश में ज्ञान पाने से ज्यादा लोगों ने डिग्रियां पाने की इच्छा रखी| यानी ज्ञान का प्रतिशत हमेशा ही कम रहा है| इसी का फायदा उठाया है इन तथाकथित बाबाओं ने| इनके लिए ज्ञान का छद्म बाज़ार किसी बाज़ार में सामान बेचने की तरह रहा है| यहाँ पर उन्होंने ज्ञान की आड़ में हर वह चीज़ बेचीं है जिसमें मुनाफा कमाया जा सके|
शांति की खोज में आया हुआ व्यक्ति उनके इस चमकीले बाज़ार में प्रवेश करते ही शांति को छोड़कर हर उस चीज़ से जुड़ जाता है जिसमें उसे अंत में अशांति ही नसीब होती है| जो बाबा लोगों को भव सागर से निकालने का मार्ग बताते थे आज उन्हें खुद जेल से बाहर निकलने का मार्ग नहीं सूझ रहा है| लगता है बाबाओं के पुण्य का अकाउंट सद्कर्मों के आधार से लिंक न होने का कारण डीएक्टिवेट हो गया है| अब लोग चोर उचक्कों से नहीं बाबाओं से सावधान रहने की हिदायत देने लगे हैं| चोर उचक्के तो सामान लूट कर छोड़ देंगे लेकिन बाबा जो लूट लेंगे उसकी भरपाई होना असंभव है|
बाबाओं के बजाये अब किसी शराबी से आशीर्वाद लेने की सलाह दी जाने लगी है| शराबी से आशीर्वाद लेना इसलिए सुरक्षित हैं क्योंकि उसे तो होश ही नहीं रहता है लेकिन बाबा ने अगर आशीर्वाद दे दिया तो उनका जोश मामले को सीधे दफा ‘तीन सौ छियत्तर’ वाला बना जाता है| पहले बाबा अध्यात्म का प्रतीक होते थे अब ‘काम’ के प्रतीक हैं| पहले बाबा अभिभावक की तरह होते थे अब किसी अमंगल के वाहक की तरह हो गये हैं|
True Words